क्या मर्द को कभी दर्द नहीं होता

पुरुषों के अधिकार की यह बहस इस सवाल के साथ आगे बढ़ती है कि जब यह दुनिया अकेले मर्दों की बनाई नहीं है, महिलाओं की भी इसमें बराबर की भागीदारी है, तो पीड़ित के रूप में सिर्फ महिलाओं पर ही विचार क्यों किया जाता है।
क्या मर्द को कभी दर्द नहीं होता, इत्यादि।

और यह बहस जब आगे बढ़ी तो अगला प्रश्न उठा की क्या पूरे देश में ऐसी कोई संस्था है जो केवेल पुरुषो के अधिकार के लिए काम कर सके?

एकाध साल पहले सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के दो सांसदों ने उत्तर प्रदेश में यह मांग उठाई थी कि राष्ट्रीय महिला आयोग की तर्ज पर सांविधानिक हैसियत वाला राष्ट्रीय पुरुष आयोग भी बने। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बारे में पत्र भी लिखा था। इन्हीं में से एक सांसद (हरिनारायण राजभर) ने यह दावा भी किया था कि आज की तारीख में पत्नी प्रताड़ित कई पुरुष जेलों में बंद हैं, लेकिन कानून के एकतरफा रुख और जगहंसाई के डर से वे अपने ऊपर होने वाले घरेलू अत्याचारों के खिलाफ आवाज नहीं उठा रहे हैं। कई तो आत्महत्या तक करने को विवश हैं।

हालांकि इस मामले में एक बड़ी सच्चाई यह है कि हमारे देश में अभी तक ऐसा कोई सरकारी अध्ययन या सरकारी सर्वेक्षण नहीं हुआ है, जो यह पता लगाए कि मर्द भी घरेलू हिंसा के शिकार होते हैं। एनजीओ ‘सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन‘ और ‘माई नेशन‘ के एक ऑनलाइन शोध में यह बात सामने आई कि देश के 98 फीसदी भारतीय पति तीन साल की रिलेशनशिप में कम से कम एक बार घरेलू हिंसा का सामना कर चुके हैं। इसकी रिपोर्ट में बताया गया कि जब पुरुषों ने पत्नी और उसके मायके वालों की ओर से घरेलू प्रताड़ना-हिंसा से जुड़ी अपनी समस्याओं के बारे में बताना चाहा तो कोई सुनने को ही तैयार नहीं हुआ। इसके विपरीत सभी ने उन्हें हंसी का पात्र बना दिया।

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