पुरुष आयोग

किसी भी प्रकार के आयोग का निर्माण किसी कमजोर समुदाय के हितों की रक्षा के लिए किया जाता है. वैसे हित जो सदियों से उपेक्षित रहे हैं और वर्तमान रूप में उनकी रक्षा नहीं हो पा रही है.

आज भारत में पुरुषो की दशा किसी से छुपी नहीं है पर लोग इसके बारे में चर्चा करने से कतराते है ! पुरुषो के हित सदियों से उपेक्षित रहे हैं और इसलिए बड़े ही शशक्त आवाज़ से इस देश के सभी लिंग समानता में विश्वास रखने वाले सभी लोगो की मांग है पुरुष आयोग का गठन!

महिलाओं को सुरक्षा देने के जो कानून बने हैं, उनके दुरुपयोग से मर्दों को प्रताड़ित किया जाता रहा है। इसकी एक बड़ी मिसाल धारा 498-ए है। अमेरिका के जिस कानून से प्रेरित होकर धारा 498-ए बनाई गई, वह अमेरिकी कानून जेंडर निरपेक्ष है और उसमें पुरुषों की प्रताड़ना के मामले भी समानता से देखे जाते हैं। दहेज प्रताड़ना का यह कानून किस स्तर तक एकतरफा है, इसका उदाहरण कुछ साल पहले यह मिला था कि 498-ए के तहत गिरफ्तार किए गए लोगों में से 94 फीसदी लोग (प्री और पोस्ट ट्रायल में) दोषी नहीं पाए गए। यही नहीं, ट्रायल पूरा होने के बाद 85 फीसदी दोषी नहीं पाए गए, लेकिन इन्हें भी बिना किसी जांच के गिरफ्तार किया गया था।

कानून की नजर में सब बराबर हों. तो उसके लिए महिला और पुरुषों में बराबरी होनी आवश्यक है ! जिस तरह के भारत के संविधान द्वारा सभी सरकारी तंत्र के होने के बाजवूद एक निष्पक्ष महिला आयोग रास्ट्रीय और राज्य अस्तर पर होता है ऐसे ही एक निष्पक्ष आयोग रास्ट्रीय और राज्य अस्तर पर कायम किया जाय !

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