पुरुष भी होते हैं पीड़ित

हमारे देश में अधिकारों की बात अक्सर महिलाओं से जोड़ कर ही की जाती है. यहां महिलाओं के लिए महिला थाना, राज्य और राष्ट्रीय महिला है, लेकिन अगर पुरुष को प्रताड़ना सहनी पड़े, तो उसके पास ऐसा कोई दरवाजा नहीं, जहां वे न्याय मांग सकें.
पुरुषों को उनके परिवार के लिए एटीएम बना दिया जाता है और जब वे अपनी पत्नी को सुरक्षा या सहूलियतें देने में चूकते हैं तो उन पर बुरा बरताव करने का आरोप लगा दिया जाता है.

पुरुषों को उनके परिवार के लिए एटीएम बना दिया जाता है और जब वे अपनी पत्नी को सुरक्षा या सहूलियतें देने में चूकते हैं तो उन पर बुरा बरताव करने का आरोप लगा दिया जाता है.

एक पुरुष अपने परिवार के लिए जितने भी त्याग करता है उन्हें कभी मान्यता नहीं मिलती और न ही समाज में पुरुषों को होने वाली समस्याओं को गंभीरता से समझा जाता है. संस्था की मानें, तो आज न्याय व्यवस्था से लेकर लोगों का सामाजिक नजरिया तक पुरुष विरोधी हो चुका है, जिसे बदलना बेहद जरूरी है.

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